मैथिली कविताः सखि हे जागल मनके आस
काशिकान्त झा रसिक सखि हे जागल मनके आस भोरे कौवा कुचरल आंगन बात लगैय खास धकधक हमर छाती धरके फरके…
काशिकान्त झा रसिक सखि हे जागल मनके आस भोरे कौवा कुचरल आंगन बात लगैय खास धकधक हमर छाती धरके फरके…
काशिकान्त झा रसिक कहल बात हमर सभ सुन सकइय गलती आ सही सभ गुण सकइय कि करइ छलहुँ हम हमरो…