काशिकान्त झा रसिक
कहल बात हमर सभ सुन सकइय
गलती आ सही सभ गुण सकइय
कि करइ छलहुँ हम हमरो नइ बुझल
किछु शब्दक मादे सभ कह सकइय
भण्डार भरल निकालब कोनाकऽ
लोक तित मिठ हमर सह सकइय
पहिने बनल अनेरेके झुठक पहाड़
आब लोकक प्रभावसँ ढह सकइय
मान मर्दन करैत छल लोकके लोक
मन हमरो किछु ओकरा कह सकइय
करब कोशिस हमहुँ मिलिकऽ रहब
संग रहब त सभ आगु बढिÞ सकइय
रचल आब हमरो सभ पढिÞ सकइय
अई छोटेटा रचना ई बढिÞ सकइय