मैथिली कथा – अर्थहीन यात्रा

Byदूधमती साप्ताहिक

२५ कार्तिक २०८०, शनिबार १६:४९ २५ कार्तिक २०८०, शनिबार १६:४९ २५ कार्तिक २०८०, शनिबार १६:४९

 सुजीत कुमार झा

अपन बातक क्रम समाप्त कऽ नेहा घरसँ निकललथि कि हम केबार वन्द कऽ भितर आबि गेलहुँ । आँखिमे अतीत आ वर्तमान दुनू आकार लेबऽ लागल । हम शोफापर बैसि कऽ पुरान बात सभकेँ स्मरण करैत अपन संगीक खाली हाथक विषयमे सोचऽ लगलहुँ ।
किए नेहा संगक मित्रता हमर मायकेँ पसिन नहि छल । सुन्नरि, स्मार्ट, हरेक काजमे आगाँ, नेहा हमरा बहुत नीक लगैत छलीह । ओ हमरासँ एक क्लास आगाँ छलीह आ बाट एक्कहि होएबाक कारणे हम प्रायः संगहि स्कूल जाइत छलहुँ । तखन हमर कोशिस रहैत छल जे मायकेँ हमरा ओकरा संगक भेटके पता नहि चलए, मुदा कि जानि मायकेँ सभ बातक पता चलिए जाइत छल ।
नेहा स्कूलसँ क्याम्पस पहुँचली तऽ दोसरे साल हमरो नामांकन ओहि क्याम्पसमे भऽ गेल । क्याम्पसक भीड़मे नेहे हमर एक मात्र सहारा छलीह । एतऽ हुनकर प्रभाव स्कूलसँ बेसी छल । क्याम्पसक कोनो कार्यक्रम होइत छल हुनका विना अधुरा लगैत छल ।
लड़का सभक एकटा लम्बा लिष्ट छल, जे नेहाक दिवाना छल । ओहो लाज नइँ मानि हुनका सभ संग बातचित कऽ लैत छलीह । बातो कऽ लैत छली मुदा पीठक पाछा ओहि युवक सभके मजाको उड़बैत छलीह । क्याम्पससँ फिर्ता होइत समय एक दिन नेहा बतौलैन्हि, ‘एखन वैचलर कऽ रहल छी । किछु बनऽमे समय लागत, कमाएमे किछु वर्ष लागत । हम तऽ कोनो एहन युवक संग विवाह करब जिनका बढि़याँ आम्दनी होइक ।’
तँए हम कोनो प्रेम–त्रेमक चक्करमे नहि पड़व । हम हुनकर दुरदर्शी बात सूनिकऽ आश्चर्यचकित भऽ गेल रही । हम कनी लजकोटर स्वभावके छलहुँ । हम किताबी दुनियासँ बाहर किछु नइँ बुझैत छलहुँ आ नेहा हमर ठीक विपरित छलीह ।
इएह कारण छल जे हमरा हुनकर व्यक्तित्व दिस आकर्षित करैत छल । मोनमे भितर एकटा बात अवश्य अबैत छल हमहुँ हुनकेँ जकाँ बनि पबितहुँ मुदा माय किए …?
संयोग बस हुनकर आकांक्षापर जे युवक खड़ा उतरल ओ हमरे सभक सम्बन्धी छल । माधव हमर दूरक सम्बन्धमे भाइ लगैत छल । माधव संग हुनक परिचय वीरगंज जाइतकाल बसमे भेल रहैन्हि । फेर कोना दोस्तीमे परिणत भऽ गेल पते नहि चलल । नेहाक बाबुक मान्यता अलग छल । नेहाक आकांक्षापर माधव भलेहि खड़ा उतरल होइक मुदा नेहाक बाबुकेँ ई बात स्वीकार नहि छल ।
एक साधारण परिवारमे अपन बेटीकेँ विवाह कऽदी ई किन्नहुँ वर्दास्त नहि छल । तँए गामे लग रहल एकटा अपने जातिक लड़का ताकि नेहाके विवाह कऽ देलकैन्हि । एहन वोल्ड लड़कीपर माय बापकेँ जोड़ चलैत अछि ई सोचि हमरो आश्चर्य लागल । मुदा ई साँच छल ।
नेहाक विवाहक किछुए दिनक बाद हमरो विवाह भऽ गेल । पहिल बेर नैहर एलाक बाद पता लागल जे नेहा नैहर आएल छथि ओहो सभ दिनक लेल । ‘लड़का नपुंसक अछि’, इएह बात नेहा सभकेँ कहने छलीह ।
ई साँच छल वा ओ अपन डिक्टेटर बाबुकेँ हुनकेँ शैलीमे जवाव देने छलीह, वएह जानौथ । बाबु अपन दाओ लगा कऽ हारि चूकल छलैथि । एहिबेर माय दवाव देलैन्हि नेहा फेरसँ एक बेर कनियाँ बनलीह आ एहि बेर ‘वर’ माधव छल । प्रेमक आखिर जीत भेल एक असम्भव सन लागऽबला बात सम्भव भऽ गेल । हमहुँ खुश छलहुँ । माधवक खुशी हमरो सभक खुशी छल ।
समय बितैत गेल आब विवाह सन अवसरिपर मात्र पारिवारिक भेटघाट होइत छल । एक दोसर पतिकेँ हमसभ पहिनेसँ जानैत छलहुँ आब आओर नजदिक भऽ गेल छलहुँ । एक बेर सोचैत छी मोन मोताविक भेलाक बादो लोक किए नहि सन्तुष्ट होइत अछि आ उच्च उड़ान उड़बाक क्रममे खसियो सकैत अछि । नेहा इएह बात नहि बूझि रहल छलीह । हुनका अपन महत्वकांक्षाक आगाँ सभ किछु छोट लगैत छल । माधव संग शिकायतक लिष्ट प्रत्येक भेटमे लम्बा भऽ रहल छल । ओ महत्वाकांक्षी नहि पार्टी, क्लवक सौखिन नहि ओ नेहाक लेल महग–महग उपहार नहि लबैत छला….. आओर नहि जानि की–की ….
आब हमहुँ पहिने जकाँ अबुझ नहि रहि गेल छलहुँ, दुनियाँदारी सिख चूकल छलहुँ आ हमरामे एतेक आत्मविश्वास आबि चूकल छल जे नेहाकेँ नीक–वेजाए आ गलत–सहीके पहिचान करा सकी ।
‘ देखू नेहा, हम बुझैत छी माधव बहुत महत्वाकांक्षी नहि छथि मुदा, अहाँकेँ खासे समस्या तऽ नहि करैत छथि । कतेक प्रेम करैत छथि । एहिसँ बड़का सौभाग्य आओर की भऽ सकैत अछि ? बताउ कते गोटेकेँ मोन जोगर घरबाला भेटैत अछि । तैयो अहाँकेँ शिकायत अछि, जखन कि बेसी महिला अनचिन्हार वा कही विवाहे दिन देखल युवक संग आजीवन संग दैत अछि ओहो बिना कोनो शिकायतके ।’ हम ई नहि कहैत छी पुरुषक सभ अन्याय चुपचाप सहैत रही । मुदा जीवनमे सभके सम्झौता तऽ करहे पडैÞत छैक । यदि महिला घर–परिवारमे तऽ पुरुष अफिसमे, काजमे तऽ सम्झौता करबे करैत अछि ।’
‘हमरा देखू, हमर घरबाला पैसाकेँ दाँतसँ पकडि़कऽ रखैत छथि । आब एहिपर कानू वा मन मनाली जे अनावश्यक खर्च करबाक आदति नहि छैन्हि, कोनो दुःख–तकलिफ हएत तऽ ककरो आगाँ हाथ नहि पसारऽ पड़त । दोसर कञ्जुस व्यक्तिमे खराब आदति जेना दारु–सिगरेटक लत पड़बाक भय नहि रहैत अछि । आब ई तऽ जाहि नजरिसँ देखू परिणाम ओहने भेटत ।’
‘ सम्झौता करब, कमीकेँ नजर अन्दाज करब ई सभ अहाँ सन कमजोर लोकक दर्शन अछि अनिमा, से अहीं करु…ई सम्झौता हमरा बसक बात नहि
अछि । हम जखन एहि संसारमे आएल छी तऽ ओकरा हम आनन्दसँ जीवऽ चाहैत छी । विवाहक मतलव ई तऽ नहि अछि जे नोकर बनल रही । ठीक छै, गल्ती भऽ गेल अछि हमरा चयनमे मुदा, ओकरा सुधारल तऽ जा सकैत अछि ।’ ‘हम अहाँ जकाँ परम्परावादी नहि छी आ, नहि होबऽ चाहैत छी माधवकेँ तऽ हम सबक सिखाकऽ रहब ।
माधबकेँ सबक सिखाबय लेल नेहा नयाँ तरिका खोजि लेलैन्हि । हुनका काजपर जाइते ओ अपन दोसर पुरुष मित्र संग भेटऽ चलि जाइत छली । हुनकर व्यक्तित्व एक चुम्बक जकाँ तऽ छलैन्हि, जकर आकर्षणमे कोनो पुरुष स्वयं खिचा कऽ चलि अबैत छल ।
नेहा आब माधवक स्वाभिमानकेँ, हुनकर पौरुषकेँ खुलेयाम चुनौती दऽ रहल छलीह । हुनका लगैत छल एहिसँ बढियाँ तलाक भऽ जाए कमसँ कम चयनसँ जीवऽ सकब ।
नेहाकेँ ई इच्छा पुरा सेहो भऽ गेल हुनका माधवसँ तलाक सेहो भऽ गेल । आब ओ अपन ४ वर्षीय बेटीकेँ छोड़ऽ लेल तैयार भऽ गेलीह, किएक कि एहि बीचमे ओ जानकीरामकेँ मोहजालमे फाँसि कऽ विवाहकऽ लेने छलीह ।
हम हुनकर नयाँ पति संग कहियो भेटल नहि छलहुँ आ नहि उत्सुकता छल । बस एतेक बुझैत छलहुँ ओ कोनो उच्च पदपर छथि आ प्रायः विदेश जाइत रहैत छथि ।
किछु दिनक बाद नेहा दोसर शहर चलि गेली । माधवकेँ देखि मोन दुखित होइत छल । एहि सम्बन्धकेँ टुटब माधवकेँ लेल एकटा कारवाइ नहि छल । ओ व्यक्तिकेँ ई घटना बड़का धक्का देने छल । ओ वैरागी जकाँ भऽ गेल छल । बहुत कमे लोकसँ भेट–घाट करैत छल । काजक बाद जे किछु समय भेटैत छल ओ अपन बेटीक संग बितबैत छल । लम्बा समयके बाद एक बेर फेर नेहासँ अचानक भेट भेल । एहि बीच हमहुँ सभ बहुत शहर घूमि इटहरी पहुँच गेल छलहुँ । भेल ई छल जे एकटा विवाहक रिसेप्शनमे सहभागी होवऽ जाहि होटलमे गेल छलहँु ओही होटलके लौवीमे अचानक नेहा देखाइ देलीह । ओ हमरा देखिली आ तुरन्ते एक दोसरकेँ निकट पहुँच गेलहुँ । नेहा आब ४५केँ छु लेने छली । हुनका संग जे पुरुष छल ओ हुनका सँ बहुत बड़का छल । ओहि समय बेसी बातचित नहि भेल मुदा हुनका देखलाक बाद पुरनका बात सभ फेरसँ स्मरण होबऽ लागल । हम हुनका तुरन्ते अपना घर अएबाक आमन्त्रण कएलहुँ । आश्चर्य आबो हुनका प्रति अनुराग बनल छल । नेहा समयपर घर पहुँचली । हम भोजन पहिनहेसँ तैयार कऽ लेने छलहुँ । मजासँ बैसिकऽ बातचितकऽ सकी से सोच छल ।
हमर पहिले प्रश्नक उत्तर झटका देलक, प्रसंगकेँ आगाँ बढाबऽ लेल हम पुछलहुँ अपनेक जानकीरामजी केहन स्वभावके छथि ? हम काल्हिए पहिल बेर देखलहुँ । नेहाक चेहरा सुखाएल जकाँ लागल आ उदासी मुस्कान देखाइ देलक आ किछुए देरमे गाएब भऽ गेल । किछु देर ओ चुपचाप रहली फेर हमर उत्सुक देखि लटपटाइत बजली, ‘ ओ जानकीराम नहि छला । हम दुनू एक्कहि संग रहैत छी । जानकीराम सही व्यक्ति नहि छला । बहुत एैयास व्यक्ति छला । अहाँ सोचि नहि सकैत छी हम कोन प्रकारक तनावसँ गुजरल छलहुँ । मोन होइत अछि आत्महत्याकऽ ली । एण्टी डिप्रेशनक दवाइ खाइत छी ।’
माधवकेँ संग कएल गेल पुरना व्यवहार बिसरि हुनकर हाथ पकरलहुँ । कएटा महिला संग जानकीरामके सम्बन्ध छल आ विवाहके ६÷७ महिनाक बादेसँ ओ खुल्लम–खुल्ला अपने अफिसक एक महिला संग घुमऽ लगला । जहिया मोन लगैन्हि तहिया घर अवैथि, जहिया चाहैथि राति हुनकेँ संग वितवैथि एहि बातकेँ हम वर्दास्त नहिकऽ सकलहुँ ।
‘ अपने खूनल खधियामे खसल छी ।’ कहऽ चाहि रहल छलहुँ मुदा हम कहि नहि सकलहुँ । हमरा हुनका संग हमदर्दी भऽ रहल छल । एकटा महिला होएबाक नाते वा पुरान दोस्तीकेँ नाते ? जे बुझी । ‘फेर आब कतऽ रहैत छी ?’ हम पुछलहुँ ।
‘ एकटा प्mलैट जानकीराम विवाहेके समयमे हमरा नामपरकऽ देने छल, ओहिमे रहैत छी । बाँकी रेडिमेड कपडाकेँ व्यवसाय करैत छी । ताकी ककरोपर निर्भर नहि होबऽ पड़ए ।
बच्चाकेँ बात भेल तऽ हम कहलहुँ दूटा बच्चा अछि एकटा मेडिकलमे आ दोसर सिए पढि़ रहल अछि । बुझैत छलहुँ हुनको बेटीक विषयमे मुदा ओ कतेक बुभैmत छलीह पता नहि अछि । ई सोचिकऽ हम किछु नहि बजलहुँ ।
ओ स्वयं कहली, ‘ हमर बेटीक विषयमे कहू, अहाँसँ बातचित होइत अछि की नहि ? हम तऽ कए बेर टेलिफोनसँ बातोचित करबाक प्रयास कएलहुँ मुदा ओ नहि कएलक ।’ हुनकर चेहरा कानल सन बुझाएल । हम हुनका दिस देखैत रहलहुँ, मुदा खोजि नहि पएलहुँ जीवनसँ भरपुर, अपने शर्तपर जीवऽबाली नेहाकेँ ।
‘माथपर छत तऽ अछि मुदा सोचि सकैत छी, ओ घरमे असगरे रहब कतेक भयावह भऽ जाइत अछि ? लगैत अछि देवाल सभ एक संग खसि हमरा पीचबाक रणनीति बना रहल हो । साँझ होइते घरसँ निकलि जाइत छी ।
कतहँु, ककरो संग …… हम अहाँकेँ पुरातन पन्थी कहैत छलहुँ, मजाक उड़बैत छलहुँ । मुदा अही अधिक समझदार निकलहुँ । जे अपन घरकेँ बनाकऽ रहलहुँ बच्चाकेँ सुरक्षात्मक माहौल देलहुँ । बच्चा अहुँकेँ लगमे नहि अछि मुदा तैयो ओ अहाँके अछि । पूर्णताक एहसास अछि अहाँकेँ, केहनो होइथ अहाँक पति अहाँक संग छथि, हुनकर सुरक्षात्मक कवच अछि अहाँक चारुदिस । हमरा केहन–केहन बात सुनऽ पड़ैत अछि । हमर पिसीक जमाए एक दिन हमरासँ कहलाह, ‘कोनो बात नहि जानकीराम चलि गेला तऽ की हम तऽ छी ने ।’
‘हुनकर बातसँ बेसी हुनकर कहबाक ढंग, चेहराक भाव हमरा परेशान करैत रहैत अछि । मुदा तैयो चुप छी । मुँह खोलब तऽ पिसी आ हुनकर बेटी दुनूकेँ दुःख पहुँचत, अपने कएल काजक सजा पाबि रहल छी …..
नेहाकेँ अपन गल्तीके एहसास होबऽ लागल छल मुदा, ठोकर खा कऽ, दोसरकेँ दुख दर्दक खियाल होबऽ
लागल छल । मुदा आब बहुत देर भऽ गेल छल । हम हुनकर सहायता तऽ कि कऽ सकितहुँ, सान्त्वनाक शब्द सेहो नहि सोचि पाबि रहल छलहुँ । ओ बजलीह, ‘अनिमा घर तऽ खाली अछि हमर मोन सेहो एक दम खाली अछि । लगैत अछि एकदम अन्हरिया राति आ हम सुनसान सड़कपर एसगर ठाढ़ छी …..खाली हाथ, आ इहो नहि बूझि रहल छी हमरा जएबाक कतऽ अछि !
हम बढ़ीक काल धरि एहिना सोफा पर बैसल रहलहुँ ।

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