♦ देवीकान्त मिश्र
काग राम राम कहि जगबै
मधुर भाससँ कोइली,
साँझ आँचरतर मुस्कैत आबय
मिथिलेमे हम देखली,
भैया कोना बिसरलेँ रौ मिथिला ई देश
स्नेह सिंचित ई नगरी ने किंचित कलेश।
भैया….
तोहर बोली अपन,तोहर भाषा अपन
रौ एतबे नहि, लिपी छौ सेहो अपन
तोँ त अपनाके चिन्ह, सुत एना ने निन्न
दर्शन पुरना पुरातन आ हो अर्वाचिन
बसुधा पओलक तोरहिसँ रौ ज्ञानक सनेस।
भैया….
देख मिथिलाक भूमि, चारुकात घूमि-घूमि
जनमल जानकी जत’ से जनककेर भूमि
जड़ लजैनीक गाछ,एखनहु होइछ
ओकरा लाज तों त कोना बिसरलेँ रौ
अप्पन समाज जड़ बिसरल ने सँस्कृति प्रमाणिक मुदा,
चेतन भऽ ने रहलौ चेतनताक लेश।
भैया…..
जन जनकेर भाव,प्रेम माझी आ नाव
गोहि दुयारि पर जौं आबै त मित्रताक भाव
जाति पंक्षी निरेख,जे पाहुनकेर सेव
सभ्य संस्कृति एहन आर के रखने अछि डेब
जोग भोगलक सँग भोगक,एतुके नरेश।
भैया…..
शंकर किंकर भेला,विद्यापतिके टोला
अयला अंगना अयाचीके अपने भोला
ओहि अंगनामे आई, ठाढ़ भेलौ कसाई
मूँह ताकौं रौ मैथिल,मिथिला तोहर माई
बचबै मिथिलाके “मुसन” कऽ मुसहनि नि:शेष।
भैया….
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