♦ मणिकांत झा
दीप स्नेहक जराबी अपन मन मे
राग द्वेषहु मिझाबी अपन मन मे।
प्रेमक दीया आ प्रीतक बाती
अमवस्या रहितहुँ छै सुखराती
वृद्धि कराबय ई अन धन मे
दीप स्नेहक जराबी अपन मन मे।
साँझहि घुराबैत छी ऊकपाती
कलश हाथ लेथिन सब अहिबाती
ईजोत देखाबी पित’र गमन मे
दीप स्नेहक जराबी अपन मन मे।
निशा राति पूजन काली आ तारा
गाम गाम मेला आ भोज भंडारा
मणिकांत गीतक राग तान मे
दीप स्नेहक जराबी अपन मन मे।
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