डा. विजय दत्त
भुरुकवा तारा उगलो नइ रहैक । तखनहि पुरना टोलमे आगि लागलक हल्ला हुअए लगलैक । गामक लोकसब कियो वाल्टीन कियो घैलामे पानी लए दौडल !
देखल गेल जे फुलेसराके घरमें आगि लागल छल ।
फुलेसराके बुढारीमे नवकी कनियांसं बेटा भेल रहैक ।
मुदा,फुसलेसरा नोकर(चाकरके अरहवैत रहैक, तिजोरीमेंसं लहनाबाला गहना–गुरिया निकाल ? नइत सबटा गोल भए जेतौक रै कपला १
तोसक तरमें हजारीसबके थक्की छै,उ सब निकाल ने रौ वेचना !
वाप रौ बाप सब सम्पैत डहि गेल ! ककर नजैर लागि गेल नइ जानि !
सम्पैतके मोह ऐतैक रहैक जे दुध पिवैत ननकिरबाके ध्याने नइ रहलैक फुलसराके १
लगभग जखन सब रुपैया–पैसा,गहना–गुरियासब निकाली लेलक तकराबाद ओ कनेक दम धेलक ! तखनहि, जेठकी पुछलक फुलेसरासं, तों सब सामान त निकालले लेकिनूदुधमुंहा ननकिरबा कतए छौ ?
फुसलेसरा, रौ बेचना ! रौ बेचना ! ननकिरबाके घरसं निकाल रौ ? घरेमे सुतले रहि गेलौ रौ ?
लेकिन,सौंसे घरमें आगि धधकैक गेल छल !
तखनहि,धनवन्तरी ओतए पहुँचल आ देखलक जे सब सामान घरसं बाहर निकलल छल तैयो फुलेसरा जोर–जोरसं छाती पीटपीटके कनैत कनैत धनवन्तरीके कहलक, जे जकरा लेल ई सब सम्पैत कमेलौं वेह नइ रहल १ बुढारीमे भेल ननकिरबा घरेमे रहि गेल ?
ई सुनि, धनवन्तरीक सौंसे देह सुन्न भए गेलैक आ अबाके रहि गेल केहेन जुग आवि गेल !
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