♦ राम भरत साह
१
हमरा ऐना प्यसल छोरि
सामने बहैत दरिया छोरि,
जीवन के कि करब मोल
महंगा लिय सस्ता छोरि ।।
२
अप्पन बिखरल रूप समेटि
आब टूटल आईना छोरि,
चल बला मसैल नहि दै
पिछा बाट मे रूकब छोरि ।।
३
भऽ जायत कद छोट
उँचाई पर चढब छोरि,
हमहुँ चलब सिख लेलौहुँ
मित्र हमर रास्ता छोरि ।।
४
गजल सभ उत्तेजित छै
एकान्त मे पढब छोरि,
यार सभहक हाल नहि पुछु
बाहर आउ परदा छोरि ।।
५
निकम्मा सभ गाममे बैसि
शहर–शहर के सभ केओ छोरि,
हम सभ आइ परदेसि भेलहुँ
अप्पन–अप्पन घरबार छोरि ।।
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