मैथिली कथाः अलग चुल्हा
कञ्चना झा जाड़क दिन कोना बीत जाइत अछि, बुझबामे नहि आबैत अछि । अहुँमे अगहन पुसक मास मुदा आजुक दिन…
कञ्चना झा जाड़क दिन कोना बीत जाइत अछि, बुझबामे नहि आबैत अछि । अहुँमे अगहन पुसक मास मुदा आजुक दिन…
कञ्चना झा लाल काकीके मरला एक वर्ष बित गेल मुदा काका एखनो शोकेमे छथि । भोजन करैत छथि आ दरबज्जे…
सुजीत कुमार झा कहीं देखा हैं तुमने उसे जो मुझे सताया करता था जब भी उदास होती थी मैं मुझे…
काशिकान्त झा रसिक बहुत दिनसँ रास करैछी कनिका कष्ट उठाउ हे कृष्ण जनकपुर आउ सगरो पसरल काल कोरोना भेलई सभके…
काशिकान्त झा रसिक सखि हे जागल मनके आस भोरे कौवा कुचरल आंगन बात लगैय खास धकधक हमर छाती धरके फरके…
काशिकान्त झा रसिक कहल बात हमर सभ सुन सकइय गलती आ सही सभ गुण सकइय कि करइ छलहुँ हम हमरो…
प्रेम झा चिन देशसँ आएल मास्टरनी, घुमि घुमि लैया क्लास गे मूर्ख बुझैया नेपाली नेता के, जग भरी होई उपहास…
– सुधिरचन्द्र आचार्य हिलबैछी गाछ तs खसैय आम चोभाजे मारलौ तs कामे तमाम मन अछि मालदs पर पाकलमे खायब गोरल…
– चन्द्रकिशोर कहियो सुसकैय कहियो घेघिआईय शब्द गुमसुम परल रहैय जस के तस लेकिन पुरान बाकस जकां बचैले हय…
सुजीतकुमार झा ‘काठमाण्डूक लोक बहुत ठग होइत अछि ने अंकल ?’ प्राची पुछलक । शायद हम ओकरा कहि पबितहुँ, नहि…